| मनसा सततम् स्मरणीयम् | |
| - डा. श्रीधर भास्कर वर्णेकर् | |
| मनसा सततम् स्मरणीयम् | |
| वचसा सततम् वदनीयम् | |
| लोकहितम् मम करणीयम् ॥धृ॥ | |
| न भोग भवने रमणीयम् | |
| न च सुख शयने शयनीयम् | |
| अहर्निशम् जागरणीयम् | |
| लोकहितम् मम करणीयम् ॥१॥ | |
| न जातु दुःखम् गणनीयम् | |
| न च निज सौख्यम् मननीयम् | |
| कार्य क्षेत्रे त्वरणीयम् | |
| लोकहितम् मम करणीयम् ॥२॥ | |
| दुःख सागरे तरणीयम् | |
| कष्ट पर्वते चरणीयम् | |
| विपत्ति विपिने भ्रमणीयम् | |
| लोकहितम् मम करणीयम् ॥३॥ | |
| गहनारण्ये घनान्धकारे | |
| बन्धु जना ये स्थिता गह्वरे | |
| तत्र मया सन्चरणीयम् | |
| लोकहितम् मम करणीयम् ॥४॥ |
Friday, June 12, 2020
मनसा सततं स्मरणीयम्
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment